भाग[ १ ][पोस्ट -१]
'दुःख ''की क्या परिभाषा है माँ ?
नीरजा ने यह कहकर अपनी बड़ी-बड़ी आँखें माँ के मुख की ओर उठा दी ,माँ थोडा सकपकाई और उसके हाथ पर अपनी गरम हथेली रखते हुए बोली-
''नीरू बेटा दुःख और सुख की परिभाषा देने से अच्छा है ...मैं तुम्हारे ह्रदय की उस व्यथा को जान सकूँ जिसने तुम्हे इतना व्यथित कर दिया है कि तुम अपने कामों में मन न लगाकर गुमसुम बैठी हो . बताओ क्या दुःख है तुम्हे ?....
नीरजा ने माँ की हथेली अपने हाथ से हटाते हुए ....सोफे से उठते हुए ...थोड़े कटु स्वर में कहा-
''माँ..इस मखमली कालीन पर खड़े होकर भी मेरे पैरों में कांटें चुभते हैं ,तुम्हारा स्नेह-प्यार मुझे झूठा लगता है ...अच्छा भोजन भी मुझे जहर लगता है....ये सब आरामदायक वस्तुएं मुझे कोई सुख नहीं दे पाती ...जानती हो क्यों?क्योंकि मुझे ये तक नहीं पता कि मेरे पिता कौन हैं ?आपके पास आने वाले मि.श्रीवास्तव...बनर्जी .....अथवा कोई और .......''
''चुप हो जाओ नीरू !!!!वरना मैं अपना धैर्य खो बैठूँगी !'' माँ ने क्रोधयुक्त स्वर में कहा .
नीरजा भी उतने ही उचें स्वर में लगभग चिल्लाते हुए बोली -
''.....चुप हो जाऊं ?...क्यों माँ क्यों ?....बीस वर्ष से चुप ही तो हूँ ...आज अगर मेरे इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिला तो मैं ख़ुदकुशी कर लूंगी ......''
''.......तो कर लो ख़ुदकुशी .......जो मन में आता है वो करो .....मेरा दिमाग मत ख़राब करो ''
यह कहकर माँ ने अपना पर्स उठाया ...रूमाल से चेहरे पर आये पसीने को पोछा और घर की सीढ़ियों से उतरते हुए ड्राइवर से गैरेज से गाड़ी निकालकर लाने को कहा .ड्राइवर के गाड़ी लाते ही उसका गेट खोलकर वे उसमे बैठ गयी. गाड़ी की आवाज सुनकर नीरजा भी बाहर सीढ़ियों के पास आकर खड़ी हो गयी ...और दूर....तक जाती गाड़ी को देखती रही .....और उसके बाद शानदार बंगले के उस शानदार ड्राइंग रूम के शानदार मखमली सोफे पर लगभग गिरते हुए अपने चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों से ढक लिया ...... और तब तक रोती रही जब तक गला न सूख गया...आंसुओं ने आँखों से बाहर आने से मना न कर दिया .
ये कोई एक दिन की बात नहीं थी ...जबसे नीरजा इस समाज को समझने लगी थी...तब से वह बार-बार माँ से यही प्रश्न करती कि-''मेरे पिता कौन हैं ?''कई बार नीरजा के मन में प्रश्न उठता -''जैसे मीनू के ,सरिता के पापा उन्हें प्यार करते हैं वैसे ही मेरे पापा भी करते ??सुनीता के पापा की मृत्यु हो चुकी है लेकिन उसकी मम्मी के पास उनकी महिला मित्रों के अतिरिक्त कोई पुरुष मित्र नहीं आता फिर माँ के पास क्यों आते हैं ??सामने शर्मा अंकल अपने सभी पुरुष मित्रों से बाहर बैठक में बात करते हैं ....कभी शर्मा आंटी उनके पुरुष मित्रों के सामने नहीं आती. किरण आंटी के पास भी आते हैं कुछ पुरुष ...लेकिन उनकी आँखों में उनके प्रति कोई वासना का भाव नहीं होता और न ही माँ की तरह वे इतनी बातें करती हैं अकेले में !'' नीरजा ने मन ही मन निश्चय किया कि ''यदि माँ पापा के बारे में कुछ नहीं बतायेंगी तो इस बार मैं इस घर को छोड़कर सदा के लिए चली जाऊंगी .......लेकिन कहाँ ??.....कंही भी...लेकिन इस नरक में नहीं रहूंगी .''
आज माँ रात के ग्यारह बजे घर लौटी .रामू ने मेन गेट खोला .नीरजा को ड्राइंग रूम में बैठे देखकर माँ बोली-
''नीरू बेटा अब तक सोयी नहीं ?क्या बात है ?'
नीरजा ने लगभग माँ को ऊपर से नीचे तक घूरते हुए देखा और कडवे स्वर में पूछा-
''क्या किसी और के साथ लौटी हैं ...क्योंकि हमारी कार तो ड्राइवर दिन में ही गैरेज में खड़ी कर गया था ...??''
माँ ने नीरजा को झिड़कते हुए कहा
-''नीरू तुम्हे इन सब बातों से क्या मतलब ?...मैं किसके साथ लौटी हूँ ?...कितने बजे लौटी हूँ ?..तुम्हे परेशानी क्या है ..?बस ये बताओ !''
''.....यही तो परेशानी है मुझे !..आप घर पर नहीं रह सकती ?नीरजा तमक कर बोली . माँ ने भी रोषपूर्ण स्वर में उत्तर दिया
''.....नीरू ..अपनी सीमा में रहकर बात करो !एक बात मैं आखिरी बार तुमसे कह रही हूँ ...मेरी अपनी दिनचर्या है ...उसमे किसी का भी हस्क्त्षेप मुझे सहन नहीं है . आगे से इस बात का ध्यान रखोगी तो अच्छा होगा .''
माँ की आँखें लाल हो चुकी थी ..वे नीरजा को घूरते हुए ,ये सब कहकर ;पैर पटकती सी अपने कमरे में चली गयी .नीरजा भी अपने कमरे में चली गयी और अन्दर से उसे लॉक कर लिया .ड्रेसिंग टेबल
[जारी ]
'दुःख ''की क्या परिभाषा है माँ ?
नीरजा ने यह कहकर अपनी बड़ी-बड़ी आँखें माँ के मुख की ओर उठा दी ,माँ थोडा सकपकाई और उसके हाथ पर अपनी गरम हथेली रखते हुए बोली-
''नीरू बेटा दुःख और सुख की परिभाषा देने से अच्छा है ...मैं तुम्हारे ह्रदय की उस व्यथा को जान सकूँ जिसने तुम्हे इतना व्यथित कर दिया है कि तुम अपने कामों में मन न लगाकर गुमसुम बैठी हो . बताओ क्या दुःख है तुम्हे ?....
नीरजा ने माँ की हथेली अपने हाथ से हटाते हुए ....सोफे से उठते हुए ...थोड़े कटु स्वर में कहा-
''माँ..इस मखमली कालीन पर खड़े होकर भी मेरे पैरों में कांटें चुभते हैं ,तुम्हारा स्नेह-प्यार मुझे झूठा लगता है ...अच्छा भोजन भी मुझे जहर लगता है....ये सब आरामदायक वस्तुएं मुझे कोई सुख नहीं दे पाती ...जानती हो क्यों?क्योंकि मुझे ये तक नहीं पता कि मेरे पिता कौन हैं ?आपके पास आने वाले मि.श्रीवास्तव...बनर्जी .....अथवा कोई और .......''
''चुप हो जाओ नीरू !!!!वरना मैं अपना धैर्य खो बैठूँगी !'' माँ ने क्रोधयुक्त स्वर में कहा .
नीरजा भी उतने ही उचें स्वर में लगभग चिल्लाते हुए बोली -
''.....चुप हो जाऊं ?...क्यों माँ क्यों ?....बीस वर्ष से चुप ही तो हूँ ...आज अगर मेरे इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिला तो मैं ख़ुदकुशी कर लूंगी ......''
''.......तो कर लो ख़ुदकुशी .......जो मन में आता है वो करो .....मेरा दिमाग मत ख़राब करो ''
यह कहकर माँ ने अपना पर्स उठाया ...रूमाल से चेहरे पर आये पसीने को पोछा और घर की सीढ़ियों से उतरते हुए ड्राइवर से गैरेज से गाड़ी निकालकर लाने को कहा .ड्राइवर के गाड़ी लाते ही उसका गेट खोलकर वे उसमे बैठ गयी. गाड़ी की आवाज सुनकर नीरजा भी बाहर सीढ़ियों के पास आकर खड़ी हो गयी ...और दूर....तक जाती गाड़ी को देखती रही .....और उसके बाद शानदार बंगले के उस शानदार ड्राइंग रूम के शानदार मखमली सोफे पर लगभग गिरते हुए अपने चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों से ढक लिया ...... और तब तक रोती रही जब तक गला न सूख गया...आंसुओं ने आँखों से बाहर आने से मना न कर दिया .
ये कोई एक दिन की बात नहीं थी ...जबसे नीरजा इस समाज को समझने लगी थी...तब से वह बार-बार माँ से यही प्रश्न करती कि-''मेरे पिता कौन हैं ?''कई बार नीरजा के मन में प्रश्न उठता -''जैसे मीनू के ,सरिता के पापा उन्हें प्यार करते हैं वैसे ही मेरे पापा भी करते ??सुनीता के पापा की मृत्यु हो चुकी है लेकिन उसकी मम्मी के पास उनकी महिला मित्रों के अतिरिक्त कोई पुरुष मित्र नहीं आता फिर माँ के पास क्यों आते हैं ??सामने शर्मा अंकल अपने सभी पुरुष मित्रों से बाहर बैठक में बात करते हैं ....कभी शर्मा आंटी उनके पुरुष मित्रों के सामने नहीं आती. किरण आंटी के पास भी आते हैं कुछ पुरुष ...लेकिन उनकी आँखों में उनके प्रति कोई वासना का भाव नहीं होता और न ही माँ की तरह वे इतनी बातें करती हैं अकेले में !'' नीरजा ने मन ही मन निश्चय किया कि ''यदि माँ पापा के बारे में कुछ नहीं बतायेंगी तो इस बार मैं इस घर को छोड़कर सदा के लिए चली जाऊंगी .......लेकिन कहाँ ??.....कंही भी...लेकिन इस नरक में नहीं रहूंगी .''
आज माँ रात के ग्यारह बजे घर लौटी .रामू ने मेन गेट खोला .नीरजा को ड्राइंग रूम में बैठे देखकर माँ बोली-
''नीरू बेटा अब तक सोयी नहीं ?क्या बात है ?'
नीरजा ने लगभग माँ को ऊपर से नीचे तक घूरते हुए देखा और कडवे स्वर में पूछा-
''क्या किसी और के साथ लौटी हैं ...क्योंकि हमारी कार तो ड्राइवर दिन में ही गैरेज में खड़ी कर गया था ...??''
माँ ने नीरजा को झिड़कते हुए कहा
-''नीरू तुम्हे इन सब बातों से क्या मतलब ?...मैं किसके साथ लौटी हूँ ?...कितने बजे लौटी हूँ ?..तुम्हे परेशानी क्या है ..?बस ये बताओ !''
''.....यही तो परेशानी है मुझे !..आप घर पर नहीं रह सकती ?नीरजा तमक कर बोली . माँ ने भी रोषपूर्ण स्वर में उत्तर दिया
''.....नीरू ..अपनी सीमा में रहकर बात करो !एक बात मैं आखिरी बार तुमसे कह रही हूँ ...मेरी अपनी दिनचर्या है ...उसमे किसी का भी हस्क्त्षेप मुझे सहन नहीं है . आगे से इस बात का ध्यान रखोगी तो अच्छा होगा .''
माँ की आँखें लाल हो चुकी थी ..वे नीरजा को घूरते हुए ,ये सब कहकर ;पैर पटकती सी अपने कमरे में चली गयी .नीरजा भी अपने कमरे में चली गयी और अन्दर से उसे लॉक कर लिया .ड्रेसिंग टेबल
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5 टिप्पणियां:
झकझोर कर रख दिया आपने
शिखा जी,किन शब्दों में प्रशंसा करुँ...आपका विषय चयन ही आपके उपन्यास को श्रेष्ठ कर रहा है...इस अनछुए पहलू को छूने के दुस्साहस के लिए मैं हृदय से आपको धन्यवाद और साधुवाद देता हूँ..!
संजय कुमार शर्मा "राज़"
http://sanjaypremgranth.blogspot.in/2012/03/blog-post.html
Welcome to my other pages: "Sanjay Kumar Sharma","प्रेमग्रंथ - संजय कुमार शर्मा" and "ग्राम्यबाला - संजय कुमार शर्मा"... to visit the paradise of hearts...ever young...ever fresh...ever alive...ever beating...n... 'LIKE' them ...!!!
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ग्राम्यबाला - संजय कुमार शर्मा
https://www.facebook.com/sanjaygramyabala
By: Sanjay Kumar Sharma
aabhar,bahut sarth rachana h sochne ko majbur kerb diya.
इतनी अच्छी शुरुआत के बाद अधूरी ही छोड़ दी कहानी आदरेया!
हम पाठकों की जिज्ञासा की परीक्षा ले रहीं हैं क्या?
आशा है शीघ्र ही अगला अंक पढ़ने को मिलेगा।
सादर
आपने बहुत ही शानदार पोस्ट लिखी है. इस पोस्ट के लिए Ankit Badigar की तरफ से धन्यवाद.
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